Last Updated on September 21, 2023 by
आईएएस जीतेन्द्र कुमार सोनी जानिए कैसे सरकारी स्कूल से आईएएस अधिकारी का सफर तय किया
यूपीएससी मे एक अधिकारी बनने का सपना सबका होता है इसीलिए इस में भाग लेने वाले अभ्यर्थी पूरी लगन और मेहनत के साथ तैयारी करते हैं। यूपीएससी का सिलेबस काफी लंबा होता है लेकिन फिर भी अभ्यर्थी अपने कठिन परिश्रम के बल पर 15 -15 घंटे की पढ़ाई करते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक आईएएस अधिकारी के बारे में बताने वाले हैं जिनके पिताजी एक किसान थे और उन्होंने सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए यूपीएससी जैसी परीक्षा में अच्छी रैंक हासिल की और एक आईएएस अधिकारी बन गए।
आज की है पोस्ट आईएएस अधिकारी जितेंद्र कुमार सोनी के जीवन परिचय से होने वाली है जिसमें हम आपको उनके जीवन से जुड़े संघर्ष के बारे में बताने वाले हैं यदि आप upsc की तयारी कर रहे है तो यह पोस्ट आज आपको मोटिवेशन से भार देगी इसलिए इस पोस्ट को शुरू से लेकर अंत तक पूरा पढ़े।
जीतेन्द्र कुमार सोनी का जन्म और परिवार
जितेंद्र कुमार सोनी का जन्म 29 नवंबर 1981 को धनासर गांव में जो कि हनुमानगढ़ में है हुआ था। इनके पिता जी का नाम मोहनलाल है जो कि किसान है इनकी माता जी का नाम रेशमा देवी है।
जीतेन्द्र कुमार सोनी की शिक्षा
जितेंद्र कुमार सोनी ने अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई अपने मूल स्थान पर रहते हुए की थी इनके पिताजी किसान थे इस वजह से इनकी हाई स्कूल की पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई है पढ़ने में यह बहुत होशियार थे इस वजह से इन्होंने सरकारी स्कूल में टॉप भी किया था।
इसके बाद इन्होंने पब्लिक पॉलिसी से एमबीए किया और उर्दू में डिप्लोमा उसके बाद इन्होंने विज्ञान में पीएचडी की और डॉक्टर की उपाधि प्राप्त कि साथ ही यह काव्य कार भी हैं। उम्मीदों के चिराग और यदावरी जैसी इनकी कुछ काव्य रचनाएं हैं। राजस्थानी काव्य संग्रह ‘रणखार’ के लिए भी सम्मानित किया गया।
जीतेन्द्र कुमार सोनी का करियर और किये गए कार्य
जितेंद्र कुमार सोनी ने अपनी यूपीएससी की सफर की शुरुआत 2014 से की थी इन्हे 2014 में पहली पोस्टिंग जालौर जिले मे जिला कलेक्टर के रूप में मिली है। क्योंकि यूपीएससी में इनका चुनाव राजस्थान केडेट के तौर पर हुआ था। उन्होंने 15 महीने के कार्यकाल के दौरान जालौर जिले में बहुत सी योजनाओं का शुभारंभ किया। इन योजनाओं में से एक योजना ‘चरण पादुका’ थी इस योजना का मुख्य उद्देश्य था कि सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चों के पैर में जूते होने चाहिए कोई भी बच्चा बिना जूते के ना रहे साथ ही इनका यह मकसद था कि बच्चों में आपसी गैर बराबरी को खत्म किया जाए।
उन्होंने इस योजना को शुरू करने से पहले पूरे जिले में सभी सरकारी स्कूलों में सर्वे कराया सर्वे के दौरान नहीं पता चला कि सरकारी स्कूलों में हजारों बच्चे स्कूल में नंगे पैर पढ़ने आते हैं इन सभी को ध्यान में रखते हुए जितेंद्र कुमार सोनी ने चरण पादुका योजना की शुरुआत की। इस योजना को सरकार बनाने के लिए इन्होंने जन समुदायों की मीटिंग की और सोशल मीडिया के माध्यम से दानदाताओं से अपील की गई कि वह ज्यादा से ज्यादा इस अभियान से जुड़े और बच्चों के लिए कुछ ना कुछ अपनी तरफ से दान करें। कुछ ही समय में यह योजना जन समुदाय और सोशल मीडिया के माध्यम से दान की गई राशि से आगे बढ़ने लगी इस योजना का नतीजा यह निकला कि 26 जनवरी 2016 को 25000 बच्चों की नंगे पैरों में जूते पहनाए गए। इनका यह अभियान इस जिले में अभी भी लागू है और अभी भी लाखों की संख्या में इन बच्चों को फायदा पहुंच रहा है।
जितेंद्र कुमार सोनी ने झालवाड़ा जिले में सांझी खुशियां नाम की एक पहल शुरू की जिसका उद्देश्य था कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को स्वेटर बाटी जाए जिससे प्रत्येक बच्चे को एक समान स्वेटर मिल सके। चरण पादुका अभियान वर्ष भर चलने वाला बयान है इस अभियान के तहत कोई भी दानदाता अपनी तरफ से गरीब बच्चों को जूता मोजा दान कर सकता है जितेंद्र कुमार सोनी अपने कार्यकाल को लेकर काफी स्टिक रहते हैं वह समय-समय पर जिलों में कई स्थानों पर दौरा करते रहते हैं और लोगों की समस्याओं को सुलझाने की निरंतर प्रयास करते रहते हैं।
इनके इस तरह के सराहनीय प्रयास के लिए इन्हें भारत सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया है इनका मानना है कि व्यक्ति जिस भी पद पर रहता है उसे उसका पूरी कर्तव्य के साथ पालन करना चाहिए। उनका मानना है कि गैर बराबरी हमारे देश की एक मुश्किल समस्या बन चुकी है जिसको सुधारने का प्रयास व निरंतर करते रहेंगे लेकिन उनका यह मानना है कि एक व्यक्ति के प्रयास से परिवर्तन संभव नहीं है सभी लोगों को इन कार्यों में सम्मिलित होकर बराबरी से भागीदार बनना होगा।
इन्होंने पाली जिले में कलेक्टर के पद पर रहते हुए भी एक योजना की शुरुआत की थी उसका नाम था “स्कूल ऑन व्हील्स”। बाद में इस योजना को विद्यावाहिनी का नाम लिया गया था इस योजना के माध्यम से सभी स्कूल के बच्चों में प्रोजेक्टर लगाए गए और उन प्रोजेक्टर में पढ़ाई से संबंधित वीडियो क्लिप चलाई जाती थी। इसके साथ ही झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिए यह स्वयं पढ़ाने जाते थे।
जब इनकी पोस्टिंग माउंट आबू में की गई थी उस समय इन्होंने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी बहुत सारे प्रयास किए थे। जब इनकी पोस्टिंग जालौर जिले में एक कलेक्टर अधिकारी के रूप में थी तब इन्होंने एक ऐसा सराहनीय काम किया था जो एक सच्चे आईपीएस होने का कर्तव्य अदा करता है उन्होंने बाढ़ के दौरान जालौर जिले के 8 लोगों की जान बचाई थी खुद की जान को दांव पर लगाते हुए। इस सराहनीय काम के लिए इन्हें राजस्थान सरकार द्वारा उत्तम जीवन रक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
बतौर कलेक्टर झालवाड़ा जिले में तैनात थे उस समय इन्होंने दुर्लभ ब्लड ग्रुप O नेगेटिव के लोगों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाने का प्रयास किया था। इनका उद्देश्य था कि यदि लोग एक ही प्लेटफार्म पर रहेंगे तो जरूरत के समय लोग एक दूसरे की सहायता कर सकेंगे। उन्होंने यह पहल व्हाट्सएप के माध्यम से शुरू की थी लेकिन वर्तमान समय में यह एक एप्लीकेशन बन चुकी है जिसका नाम “रक्तकोष ” है जिसके जरिये 24×7 सुविधा प्रदान करती है।